डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सेंटर फॉर लिवेबल प्लेनेट एंड सस्नेबल डेवलपमेंट की ओर से भारतीय मूल की अंतरिक्षयात्री सुनिता विलियम्स के साथ एक वेबीनार आयोजित किया गया। इस वेबीनार में सुनिता विलियम्स ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सेंटर के सीईओ सृजन पाल सिंह के साथ अपने जीवन और अंतरिक्ष यात्रा के बारे में कई महत्त्वपूर्ण बातों को साझां किया। दुनियाभर के 1.7लाख लोगों द्वारा इस वेबीनार को देखा गया।
क्या बनाना चाहती थी सुनिता
विलियम्स
इस वेबीनार में सुनिता
विलियम्स ने अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि मुझे जानवरों से बेहद प्यार
हैं और शायद इसीलिए मैं एक पशुचिकित्सक बनना चाहती थी। उन्होंने कहा मैंने बचपन
में कभी भी अंतरिक्ष यात्री बनने का विचार नहीं किया था। जिन कॉलेज में मैं एडमिशन
लेना चाहती थी, उनमें एडमिशन नहीं मिला। इसके बाद बड़े भाई ने नेवी व नेवल एकडेमी
ज्वाइन करने का सुझाव दिया। जिस पर विचार करने के बाद मैंने नेवल एकडेमी और नेवी
ज्वाइन की और एक पायलट बन गई। मैं जेट पायलट बनना चाहती थी, लेकिन मुझकों
हेलिकॉप्टर पायलट बनाया गया। उन्होंने बताया कि वह 1998 में नासा पहुंची और इसके
बाद उनको पहली बार 2006 में अंतरिक्ष में जाने का मौका मिला।
अतंरिक्ष के अनुभव
अंतरिक्ष पहुंचने के अपने
अनुभव को साझां करते हुए सुनिता विलियम्स ने बताया कि अंतरिक्ष से धरती को देखने
का एक अलग ही अनुभव होता है, वहां से धरती का नजारा बेहद ही अविश्वसनीय लगता है। सुनिता
विलियम्स को यह सब एक सपने की तरह लग रहा था।
अंतरिक्ष में खुद के स्वस्थ
रखना बेहद ही जरूरी होता है। ऐसे में हम वहां रोजाना दो घंटे व्यायाम करते थे। साथ
ही वहां भी हमें धरती की तरह ही दिनचर्या को बनाए रखना होता था। इसके अलावा हम
अंतरिक्ष में ग्रीन विच मिन टाइम पर चलते थे, जोकि यूरोपीय समय के समान होता है।
अंतरिक्ष में जाने के बाद
भी हमारा धरती से संपर्क रहता है। हम स्पेस सेंटर से लगातार जुड़ें रहते हैं, टीवी
देखते हैं और घर वालों से इंटरनेट के माध्यम से बात भी करते हैं। सुनिता विलियम्स
ने बताया कि अंतरिक्ष में जब मैंने स्पेस मैराथन की थी, तो उस समय मेरा वजन आज के
मुकाबले थोड़ा कम था। मैंने स्पेस में 50 घंटे की चहलकदमी की है, इसके लिए प्रैक्टिस
करनी पड़ती है। अंतरिक्ष में शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना बेहद जरूरी होता
है।
अंतरिक्ष में हम अपने करीब
हर 1:30 घंटे में पृथ्वी का चक्कर लगा रहे थे। इसमें हमको 45
मिनट दिन और 45 मिनट रात से गुजरना पड़ता था।
अंतरिक्ष यात्रियों को कैसे
किया प्रोत्साहित
अंतरिक्ष में होने वाले कुछ
बदलावों पर चर्चा करते हुए व लोगों के सवालों के जवाब देने के साथ ही सुनिता
विलियम्स में विशेष रूप से महिलाओं को अंतरिक्ष में जाने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष में जाने का सपना देखने वाली लड़कियों को अपने दिमाग में
किसी भी प्रकार के भेदभाव का प्रश्न नहीं लाना चाहिए। इस क्षेत्र में लड़के व
लड़कियों को उनकी काबिलियत के दम पर मौका दिया जाता है।
0 Comments